Tuesday, January 26, 2010

सन्नाटा

सुबह सुबह मैं जो निकला,
चाय पीने, धूप खाने,
दोस्तों से गप लड़ाने,
धूप तो थी, चाय ना थी,
खाली गलियाँ ग़म मनातीं,
जिनमें घुमते थे अकड़ में,
कुछ मोटे, कुछ मरगिल्ले,
चार कुत्ते, आठ पिल्ले,
सड़कें सूनी, दुकानों पर भी,
मोटे मोटे ताले पड़े थे,
और हर नुक्कड़ पे कुछ,
खाकी वर्दी वाले खड़े थे,
कुत्ते नहीं डरे,
मैं डर गया,
ज़रा उधर गया,
तो देखा एक सज्जन,
पीठ मेरी ओर कर,
सीटी बजाते हुए,
कर रहे थे दीवार तर,
मैंने उन्हें टोका,
बीच में रोका,
और पूछा,
"इतना सन्नाटा क्यों है भाई,
क्या कर्फ्यू लग गया है?"
वो बिगड़ कर बोले,
"कैसे भारतीय हो?
जानते नहीं, आज 26 जनवरी है।"
मैंने शर्मसार होकर कहा,
"आपकी ज़िप अब भी खुली पड़ी है,"

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