Tuesday, December 22, 2009

यहाँ...

ख़ाली ख़ुद से बातें करना, सबके बस की बात नहीं,
तनहाई में घुट-घुट मरना, सबके बस की बात नही,
जिन गलियों में शाम-सहर, मरघट सा सन्नाटा हो,
उन गलियों से रोज़ गुजरना, सबके बस की बात नहीं,
यूँ तो ज़िंदा चिता पे बैठे, हँस-हँस कई जला करते हैं,
जल जल कर पर और निखरना, सबके बस की बात नहीं,
जिसको दाना-दाना देकर, ख़ुद उड़ना सिखलाया हो,
उस चिड़िया के पंख कतरना, सबके बस की बात नहीं,
यूँ तो सबको इक ना इक दिन, जाना है उस और मगर,
रोज़ मौत के घाट उतरना, सबके बस की बात नहीं।

Thursday, November 19, 2009

आओ देखें...

आओ देखें क्या होता है,
जब चाँद-सुनहरी रातों में,
कुछ तिनके ले के हाथों में,
बालू की गीली छाती पर,
कुछ हर्फ़ उकेरे जाते हैं,
आओ देखें क्या होता है।
आसमान के कोरे मन पर,
मटमैली सी स्याही ले कर,
आँखें मीचे, बायें हाथ से,
जब चित्र बिखेरे जाते हैं,
आओ देखें क्या होता है।
जब सर आकाश में उड़ते हैं,
पर पाँव ज़मीं पर पड़ते हैं,
आसमान में हाथ उठा,
जब मेघ निचोड़े जाते हैं,
आओ देखें क्या होता है।
जब पत्थर सोचा करते हैं,
जब गूंगे बोलने लगते हैं,
जब भीड़ गवाही देती है,
जब सच बटोरे जाते हैं,
आओ देखें क्या होता है।