Friday, March 4, 2011

कालिख

सूरज सा जलना था,
तारों पे चलना था,
जीना था ज़िन्दगी से ज्यादा,
परबत उठाएंगे,
सागर पी जायेंगे,
ऐसा था अपना इरादा,
मगर,
वक़्त की मार से,
बच न पाया आशियाँ,
तिनका तिनका था चुना,
जा उड़ा यहाँ वहाँ,
ठूंठ जो बचे हैं वो,
पेड़ थे हरे भरे,
बैठे हैं मलाल कर,
हाथ हाथ पर धरे,
रात के ये अंधियारे,
जायेंगे गुज़र मगर,
वो कालिख छोड़ जायेंगे,
जो मिट ना पाए उम्र भर।