ख़ाली ख़ुद से बातें करना, सबके बस की बात नहीं,
तनहाई में घुट-घुट मरना, सबके बस की बात नही,
जिन गलियों में शाम-सहर, मरघट सा सन्नाटा हो,
उन गलियों से रोज़ गुजरना, सबके बस की बात नहीं,
यूँ तो ज़िंदा चिता पे बैठे, हँस-हँस कई जला करते हैं,
जल जल कर पर और निखरना, सबके बस की बात नहीं,
जिसको दाना-दाना देकर, ख़ुद उड़ना सिखलाया हो,
उस चिड़िया के पंख कतरना, सबके बस की बात नहीं,
यूँ तो सबको इक ना इक दिन, जाना है उस और मगर,
रोज़ मौत के घाट उतरना, सबके बस की बात नहीं।
रोज़ मौत के घाट उतरना, सबके बस की बात नहीं।
Kaise likh leta hai tu aisa saale? I mean itna achcha? Awesome
ReplyDeletemain kahan yaar.
ReplyDeleteye to aapki zarranawaji hai.
thanx
sarfira to naam sahi diya hai....lekin aise likh kaise sakhte hain yaar! maine to yeh words bhi 8th class ke baad ab sune hain.
ReplyDelete